Friday 12 December 2014

मौन की दीवार


मौन की दीवार के रहते
एक यशोधरा को
जीवंत करता है,
दूसरा, उपलब्धियों की
मरी कामनाओं को 
पूर्ण करने के लिए,
बोधिसत्व को
शहर के व्यस्त पथ पर
निरंतर खोजता रहता।
आँखें अब भी
अभिसारण करने को
नहीं चूका करती,
शब्द का निर्झर
मौन की दीवार को
बहा ले जाने को
व्याकुल हो कर भी
सरस्वती की धार सा
छिपा जाता।
दुरभिसंधियाँ.............
दिये हुए गुलाबों की,
तह कर संभाली हुई
जीर्ण-शीर्ण चिट्ठियों की
भला कहाँ सुनती।
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद (राज)

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...