Wednesday 5 November 2014

चिन्गारी की सीमा

चिन्गारी की सीमा
असीम
उसमें दीपक की
लौ
उसमें चूल्हे की 
अग्नि
उसमें अनुष्ठानों की
ज्वाला
उसमें क्रान्ति की
मशाल
उसमें वन की
दावाग्नि
उसमें सूरज की
सूक्ष्म ऊर्जा
उसमें प्राण, उसमें गति,
उसमें लय करने की क्षमता
लघु मानना
उपेक्षा करना
बहुत बड़ी है भूल,

चिन्गारी को जानें-समझें 
वह अनुभव होती, 
कभी वाणी से, कभी दृष्टि से 
कभी गहरे मोन के 
ठंडे सागर से,
वह आती-जाती
कहीं हमारे मध्य।

- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।

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