Saturday 6 September 2014

रिश्तों की बुनियाद

रिश्तों की बुनियाद
कंकरीट पर
खड़ी होती नहीं मिलती
जब भी देखा उसे
प्यार की गीली मिट्टी पर 
पली-बढ़ी खिलखिलाती मिली।
रिश्तों के आँचल में
पनपते हैं कई सपने
जिन्हें पूर्ण करने में
एक पूरा युग खप जाता,
फिर भी कह नहीं सकते
देखे गए सपने
यथार्थ में साकार होंगे।
सपनों को पूरा करने में
कितने ही जन
कतरा-कतरा हो कर
बिखर जाते,
लेकिन ,
उन लोगों को
नहीं होता आभास कि
उनके लिए
कोई कितनी बार है मरा-खपा।
रिश्तों से भी ज्यादा
है बहुत जरूरी
पहले उनको बचाना
जो रिश्तों के नाम
असमय ही काल के पास
खड़े हो कर
नर्म सपनों में खो जाते,
उनके ही नर्म सपनों की तह में
कहीं काल अंगड़ाई लेता
अनुभव होता
हाय ! यह अनुभूति बहुत भयावह
फिर भी जीवन के लिए
जद्दोजहद बहुत जरूरी ।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।

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