Monday 7 January 2013

मुझे तुम्हारी चिंता है


स्वप्न देखना ,
फिर उन्हें यथार्थ में उतारना ,
नहीं है आसान,
कभी धरती पर उतर कर,
फिर से उड़ जाते है,
और कभी-कभी,
ताना-बाना बुनने से पहले ही,
बिखर जाते हैं स्वप्न ,
सूखे घरौंदे की तरह.

मेरे स्वप्नों की दुनिया में,
तुम हो,
बोलने वाले खिलौने की तरह,
मैं हूँ,
खिलौने से बहल जाने वाले,
हठीले बच्चे की तरह ,
और साथ ही चाहत है ,
बहुत सारे खिलौनों की,
जिस से सज जाए,
मेरी छोटी सी दुनिया ,
जिस में ,
नन्ही सी सुकोमल जान ,
जी भर के चहके ,
सद्यःजात चिड़िया के ,
नन्हे चूजे की तरह .

हर स्वप्न को ,
धरातल पर उतारने की,
अथक कोशिश में ,बहुत घायल हूँ ,
मरुस्थल के प्यासे,कुरंग की तरह,
जिस के खुर खिर गये हैं,
सुनहरी त्वचा ,
कड़ी धूप में जुलस गयी है,
आँखें सिक्ता में तप कर ,
पके जामुन सी हो गयी है,
और कंठ ,प्यास के मारे ,
सूख गया है ,
बस दुःख इस बात का है-
अब कहीं कोई कोयल ,
गाती ही नहीं है गीत ,
जो कि बहुत जरूरी है ,
जीवन के स्पंदन के लिए.

इस सब का यह,
मायने नहीं कि ,
मैं हार गया हूँ ,
या ,
विषम परिस्थितियों से,
कोई समझौता करने को ,
तैयार हो गया हूँ ,
बल्कि ,स्वप्नों को ,
धरती पर उतारने को और अधिक,
संकल्पबद्ध हो गया हूँ,
उस जिद्दी बच्चे की तरह ,
इच्छित खिलौना नहीं मिलने पर,
सरे राह ठिठक जाता है ,
या,
भरे बाजार ,
रोते हुए चलती सड़क पर,
लेट जाता है ,
आखिर कर,मुझे तुम्हारी चिंता है,
देना चाहता हूँ ,तुम को एक दुनिया .

            - त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.

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