Sunday 2 December 2012

निराकार सी .



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हरी दूब पे ,
शबनम तिरती ,
निराकार सी .
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रंग गंध में ,
या है गंध रंग में ,
निराकार सी .
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दसों दिशा में ,
पवन बह रही ,
निराकार सी .
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तेरी साँसों को ,
अपने में है पाया ,
निराकार सी .
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सच्ची कविता,
कल-कल बहती,
निराकार सी .
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   -त्रिलोकी मोहन पुरोहित.

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