Sunday 18 November 2012

ममता बांधें .


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धूल उडाती ,
गायें घर को लौटी,
ममता बांधें .
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भरी घास में ,
शेर पसर जाता,
बकरी मारी .
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नीला नभ है ,
श्येन ऊपर-ऊपर,
चिड़िया काँपे .
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कई दिनों से ,
नभ में चन्दा आया ,
थी पडौसन .
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हवा चली तो ,
स्वर बंसी बहता ,
थी विरहिण .
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