Saturday 6 October 2012

घर कैसे बनते सीखता जा.


चल रे बाबा , रेत पे चल ,
घर बिखरे हैं , रेत पे चल .
रेत पे अपने ,पैर तू धर ,
पैर पे अपने , रेत को धर .
धीरे-धीरे रेत को थपता जा ,
घर कैसे बनते सीखता जा.

चल रे बाबा , खेत पे चल ,
घर खाली हैं , खेत पे चल .
मिट्टी से अपने हाथ तू सन ,
हाथ से अपने खेत को खन,
धीरे-धीरे खेत को खनता जा ,
घर कैसे भरते सीखता जा.

चल रे बाबा , नदी पे चल ,
घर डूबे जाते ,नदी पे चल .
कागज से अपनी नाव बना,
नदी में अपनी तू नाव तिरा ,
धीरे - धीरे नाव तिराता जा ,
घर कैसे तिरते सीखता जा.

चल रे बाबा , आँगन पे चल ,
घर बिखरे हैं , आँगन पे चल .
आँगन में आ कर मित्र बुला ,
मित्र बुला कर नव खेल रच.
धीरे-धीरे मित्रों में घुलता जा ,
घर कैसे बंधते सीखता जा .

चल रे बाबा , बाहर को चल ,
घर में घुटन ,बाहर को चल .
इधर-उधर देख कदम बढे ,
कदम बढे तो तू कदम बढ़ा .
धीरे-धीरे कदम बढ़ाता जा ,
घर कैसे चलते सीखता जा.

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