Tuesday 2 October 2012

मेरे रोने पर हँस पड़े हो यार क्या कहने .


तुम्हारी इन अदाओं के यार क्या कहने.
मेरे रोने पर हँस पड़े हो यार क्या कहने .

वो भी दिन था कि तुम मेरे पास आते थे ,
मुझ से मेरा ही पता पूछते हो क्या कहने .

गिड़गिड़ा कर माँगते थे मुझ से मेरे हाथ ,
वही हाथ मैले लगते हैं आज क्या कहने .

कहते थे मेरा खूँ गंगा के पानी सा निर्मल ,
अब पानी समझ के बहाते हो क्या कहने .

चीख कर माथे पे छप्पर की बातें कही थी ,
टीन-टप्पर ही उड़ा ले गए यार क्या कहने .

कभी मेरी बातें गीत - गजल हुआ करती ,
अब गर्म लावे सी वो लगती है क्या कहने .

कल तुम ने ही तीली जला कर दी मेरे हाथों ,
अब कहते हैं यह मेरी अदावट है क्या कहने.

मुझे मालूम है तुझे लौट कर आना है कल ,
गडियाली आंसू बहेंगे फिर यार क्या कहने .

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