Sunday 30 September 2012

अपने ही पापा के घर.



मैं तितली सी ,
सदा रही हूँ ,
सतरंगी पंख लिए
अपने ही पापा के घर.

खाई - खेली ,
तुतलाई हूँ ,
उठी - गिरी हूँ ,
इठलाई हूँ ,
दुनिया से ,
दो बातें करना,
मैंने जाना ,
अपने ही पापा के घर.

अकडम - बकडम,
के खेलों से ,
इत्ती-बित्ती ,पंचा कांकर,
के खेलों से ,
जीत -हार का मतलब ,
परिभाषित करना ,
मैंने जाना ,
अपने ही पापा के घर.

भाई-बहिनों से  ,
सीख वकालत ,
संगी-साथी से ,
मान-मनोवल  ,
रिश्तों की मधुर गंध,
को रूपायित करना ,
मैनें जाना ,
अपने ही पापा के घर.

रेत-ढूह में खूब घरौंदे ,
रच-रच कर के ,
खेती-बाड़ी छत-आँगन ,
रच-रच कर के ,
गुड्डे - गुडिया की दुनिया से ,
वर्तमान को सहेजना ,
मैंने जाना ,
अपने ही पापा के घर .

अब सहेजती ,
प्रियतम का घर ,
रोके-मौके आना-जाना ,
अब पापा के घर ,
सरस बादली बन कर छाना ,
हर उष्मा पर बरसना ,
मैंने जाना ,
अपने ही पापा के घर.

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