Wednesday 4 July 2012

आ कर के छू ले दो बूंदे बारिस की .



आ कर के छू ले दो बूंदे बारिस की .
घुटन समझ ले दो बूंदे बारिस की .

यहाँ-वहाँ भटकते प्यासे सब कोई .
प्यास बुझा जाए दो बूंदे बारिस की .

इक अर्से से मुंह फैरे बैठे  वे हमसे .
समझा दे आ के दो बूंदे बारिस की .

कितनी दस्तक दी है उन के ही द्वारे.
खुलवा दे दरवाजा दो बूंदे बारिस की .

अब घायल पंछी से हम तड़फ रहे हैं.
खुले हुए मुंह आए दो बूंदे बारिस की .

वे चुपके - चुपके हंसते मेरी हालत पे .
वो कटार सी लगती दो बूंदे बारिस की .

सरे राह धोखा खाया है  उन से यारों .
इश्तहार सी कह दे दो बूंदे बारिस की .


No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...