Tuesday 15 May 2012

भोगवतीपुरी अद्य , रखती है  रण-चिह्न ,
               दशग्रीव-नाग  युद्ध , किसने भुलाया है.
कैलास-शिखर जहां, कुबेर का गढ़ वहां,
               युद्ध छेड़ रावण से , लंका को गंवाया है.
वर वीर रावण से ,मय तक काँप गया ,
                दे कर के आत्मजा को,जामाता बनाया है.
सहोदरा कुम्भीनसी , पति मधु दानव जो ,
                रावण  से  रण  चाह , मर्दन  कराया  है . 

खोया-खोया रावण को , देख निशाचर कहे ,
                दश दिशा जयघोष , आप के ही गूंजते.
वासुकी-तक्षक हारे , शंख-जटी नाग हारे ,
                रावण का नाम सुन , अचला को चूमते .
वरुण  के पुत्र  सारे  , रावण  की असि देख ,
                बावरे वो हो कर के , यत्र - तत्र  घूमते .
यमराज सैन्य - दल , युद्ध  में कुचल कर ,
                 काल आप रोक कर ,स्वच्छंद हो झूमते .

कई - कई ऋषि हुए , जपी - तपी सिद्ध हुए ,
                  रावण सा साधक तो , कृपा कर कह दें .
देवाधिदेव शिव के , वर से सायुज्य हो के ,
                  रावण सा सम कौन , कृपा कर कह दें .
अगणित वीर यहाँ , तिस पर इन्द्रजीत ,
                  इन्द्रजीत सम अन्य ,कृपा कर कह दें .
इन्द्र मुक्ति हेतु ब्रह्मा , आ कर के कहते हैं ,
                  रावण सा यश कहाँ , कृपा कर कह दें . 


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