Thursday 1 September 2011

नयी गति .नयी- नयी प्रवृत्ति , नयी चिन्तना , नयी-नयी सृष्टि

नयी गति .नयी- नयी प्रवृत्ति ,
नयी चिन्तना , नयी-नयी  सृष्टि.
जय-जय  भारत .जय- जय-जय

चढ़ -चढ़ आया जब-जब ज्वार ,
तव आकर्षण माँ, बस तव आकर्षण.
रोता - चिल्लाता ,
अर्द्ध- शुष्क ,  विकृत  - विगलित ,
मृत -सत्य ,
बहते- बहते  भी करता जाता,
संघर्षण ,
इसको बह जाना होगा ,
रिक्त जगह पर विकसे,
शिव - स्वरूप नव  सत्य 
जय-जय  भारत .  जय- जय-जय


नयी भोर में,
नव आलोक,
सैनिक -पलटन सा ,
कर रहा संचलन,
लेकर  नव  सन्देश,
द्विज - कुल गाये नव-नव गीत,
नूतन छंद में,नूतन रीत



बड़े वेग से , आतुर-व्याकुल ज्वार  ,
कर- कर कोप ,
कूल-कूल पर करता चोट ,
व्याकुल कूल , बह -बह जाता  ,
फिर जम जाता ,
लेकर शुचिता , द्रवित किनारा .
नयी मृदा   के, नर्म कोख में ,
फिर-फिर जन्म ,
नये  अंकुरण की अभिनव पलटन,
करती है जय घोष ,
जय-जय  भारत .जय- जय-जय .

नव- नव परिवेश . नव-नव योवन  ,
बढ़ता है सम्मुख सावेश,
परे रहो ,बढ़ने भी दो,
यह नव सृजन को आतुर-व्याकुल,
इसमें है-
नयी गति .नयी- नयी प्रवृत्ति ,
नयी चिन्तना , नयी-नयी  सृष्टि .
जय-जय  भारत .जय- जय-जय.

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...