Monday 22 August 2011

बहती हुई नदी

सत्य से अनजान रह ,
तथ्यों से आसक्ति ,
कर रही है सीमित,
जीवन गंध के श्रोत,
जैसे बांध दी गयी हो ,
बहती  हुई नदी .

नदी बंधती नहीं .
बस बदल जाती है,
एक ताल में,
जहां  पर डेरा डाल   देते हैं   ,
रंगीन मिजाज मछेरे ,
उन्हे क्या लेना देना ,
नदी के सुदीर्घ प्रवाह से ,
जहाँ  बसती है बस्तियां  ,
लहलहाते हैं  खेत ,
पनपते हैं  वन - उपवन ,

उन्हें  चाहिए मात्र-
अपने -अपने  जालों  में ,
अपने -अपने मतलब की मछलियाँ

पकड़ी गयी मछलियों से,
बनायेंगें  अपनी-अपनी पेठ ,
समाज मे तथाकथित प्रतिष्ठा, 
और- 
साधने की  कोशिश करेंगे ,
सत्ता के घोड़े ,
जिससे सत्ता के रथ में बैठ ,
वहां  कर सके , 
सत्ता के गलियारे में,
स्वच्छंद चहलकदमी  , 
जैसे-
अँधेरे और जुर्मुटे में  रेंगते हैं , 
निगलने को आतुर भीमकाय अजगर.

शवों के ढेर पर ,
टिकाये अपना खंभ ,
चाहते हैं  बटोरना तथ्य , 
मसलन कि--
पैसा , जमीं , ताकत , 
और-
इनके बलबूते पर,
कर लेना चाहते  हैं , 
मुट्ठी में , 
तरल सुकोमल सुगन्धित सत्य ,  
मानो जकड़ लेना चाहता है  , 
गजशावक,    
शंख- पुष्पी का सुकोमल, 
श्वेत,अमृत बूँद सा पुष्प .

                                                                                                                                                                

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